A@KHIR K@ISE...BATAU TMKO

मुझ पर जो बीती वो दास्तान सुनाउं कैसे...
जख्म दिल में हुए है तुम्हे दिखाउं कैसे...
गर गैर होता तो भुला देता मैं उसको...
अपनों से भी अपना था उसको भुलाउं कैसे...
देखता हूं उसकी तस्वीर अश्क बहने लगते है...
आंखों में इन अश्कों को अब छुपाउं कैसे...
याद उसकी तन्हा होने का अहसास दिलाती है मुझको...
इस तन्हाई से पीछा अब मैं छुडाउं कैसे...
जी रहा है वो मेरे बिन नयी दुनियां बसाके...
मेरी दुनिया थी वो उसके बिन जिन्दगी बिताउं कैसे...
इतना कमजोर हो गया खुद को मिटा भी नहीं सकता...
दिल में बसी है तस्वीर उसकी खंजर चलाउं कैसे...
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